आज भी कुछ शेष..............
http://hindikaavaya.blogspot.com/2008/11/blog-post_27.html
ह्रदय के दर्पन के बिख्ररे टुकडो को,
समेटने मे बीत जाते है युग कई
फिर भी, कही रह जाता है
कोई एक छोट सा टुकडा,
जो उम्र के अन्तिम छोर तक
चुभता रहता है............
आखो के अश्रुधारो को सुखने मे
लग जाते है साल कई
फिर भी कही एक मोती आसू का
छिपा होता है पलक की
कोठरी के भीतर
जो टीस पैदा करता रहता है
और आभास कराता रहता है की,
आज भी कुछ शेष..............
समेटने मे बीत जाते है युग कई
फिर भी, कही रह जाता है
कोई एक छोट सा टुकडा,
जो उम्र के अन्तिम छोर तक
चुभता रहता है............
आखो के अश्रुधारो को सुखने मे
लग जाते है साल कई
फिर भी कही एक मोती आसू का
छिपा होता है पलक की
कोठरी के भीतर
जो टीस पैदा करता रहता है
और आभास कराता रहता है की,
आज भी कुछ शेष..............
amazing.......
ReplyDeletebohot achha likha hai...
ReplyDeletehttp://shaam-e-ghazal.blogspot.com